भेड़िया और सिंह : बहुत बहुत समय पहले की बात है एक भेड़िया और एक सिंह शिकार की खोज में एक साथ घूम रहे थे। देखा जाये तो एक प्रकार से शेर का मंत्री भेड़िया था।
वह शेर भेड़िये की हर एक सलाह पर गौर जरूर करता था। अचानक ही घूमते समय भेड़िये को कुछ भेड़ों की आवाज़े सुनाई पड़ी।
‘‘जंगल में भेड़ों के मिमियाने की आवाज को सुनकर भेड़िये ने शेर से बोला – आप यहीं ठहरिए। मैं जाकर देखता हूं और यदि हो सके तो आपके लिए एक मोटी-ताजी भेड़ मारकर आपके भोजन का इंतेजाम करता हूं।’’
सिंह बोला – “ठीक है।’’ मगर भोजन लाने में ज्यादा समय मत लगाना। मैं बहुत ही भूखा हूं।
भेड़िया भेड़ की शिकार की खोज में निकल पड़ा।
कुछ सौ गज लगभग आगे जाकर वह भेड़-बाड़े के पास जा पहुंचा। भेड़बाड़े के सभी दरवाजे मजबूती से बंद थे और बड़े-बड़े खूंखार कुत्ते भेड़-बाड़े की निगरानी कर रहे थे। यह देखकर भेड़िये का मुंह लटक गया |
भेड़िया सोचने लगा की अब क्या करे ? वह समझ गया कि उसकी दाल यहाँ नहीं गलने वाली हैं।
उसने सोचा जान को जोखिम में डालने से तो बेहतर यह है कि लौट कर कोई बहाना बना दिया जायेगा।
यह सोच कर भेड़िया लौट वापस शेर के पास लौट आया और सिंह से बोला – ‘‘उन भेड़ों का शिकार करना बेकार (useless) है। वे बहुत ही दुबले -पतले और बीमार से लग रहे थे। उनको देख कर ऐसा लग रहा था की उनके शरीर में जरा सा भी मांस नहीं होगा। अभी उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ देना हमारे लिए अच्छा और फायदेमंद होगा। जब उनके शरीर पर मोटी चर्बी चढ़ जायेगी, तब उन्हें खाना और भी अच्छा रहेगा और वैसे भी मोटी-ताजी भेड़ों को खाकर ही हमारी भूख शांत हो सकती है।’’